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रहस्यमाई चश्मा भाग - 16




अपनी कड़ी मेहनत एव लगन से सुयश ने बहुत शीघ्र ही अपने बाए हाथ से लिखने पढ़ने में दक्ष हो गया पढा लिखा तो था ही सिर्फ अभ्यास की आवश्यकता थी जो उसने प्राप्त कर लिया जब वह बाए हाथ से कार्य करने में विल्कुल निपुण हो गया तो उसके मन मे एकाएक एक ख्याल आया क्यो न चौधरी साहब की पेंटिंग बना कर उन्हें भेंट करें सुयश ने निश्चय कर लिया कि वह चौधरी साहब कि खूबसूरत पेंटिंग बना कर उन्हें भेंट करेगा वह अपने उद्देश्य में लग गया हवेली का जो कमरा उंसे मिला था!


उसमें उसके अतिरिक्त कोई नही आता जाता था उसने कमरे के कोने में एक ऐसी जगह तलाश की जहाँ अमूमन किसी की नजर न पड़े वह चाहता था कि अपने बाए हाथ कि दक्षता का प्रमाण चौधरी साहब को पहले दे जिसे उन्हें देने से पूर्व कोई न देख पाए । जब भोजन के लिए चौधरी साहब और सुयश एक साथ बैठे तब सुयश ने चौधरी साहब को प्रसन्न चित्त देखकर सुयश बोला बाबूजी मैं चाहता हूँ कि कुछ दिन अपने कमरे की साफ सफाई सज्ज़ा आदि मैं स्वंय करु जिससे कि मुझे अपने बाए हाथ पर भरोसा हो जाये और यह भ्रम समाप्त हो जाए कि वह अपंग है उसका दाहिना हाथ नही है वह अपंग नही बल्कि दिव्यांग व्यक्ति बनकर समाज के सामने एक नए उत्साह का सांचार करना चाहता है!

विशेषकर आज जब भारत को आजाद हुए मात्र आठ दस वर्ष ही हुए है और विगलांगता अभिशाप मानी जाती है मैं यह प्रमाणित करना चाहता हूँ कि विकलांग होना अभिशाप नही बल्कि एक वरदान है जो ईश्वर द्वारा मनुष्यो को उसके पराक्रम पुरुषार्थ को जीवंत जाग्रत करने के लिए दिया है चौधरी साहब सुयश जैसे नौजवान से ऐसी बाते सुनकर और भी प्रशन्न मुद्रा में ठहाके लगाते हंसते हुए बोले देखा माँ भारती तूने तेरी संतानों में कितना स्नेह सम्मान है तेरे लिए तुझ्रे स्वतन्त्र कराने के लिए जब समूर्ण भारतीय संघर्ष कर रहा था तब अंग्रेज कहते थे भारतीय यदि स्वतंत्र हो गए तो सारी व्यवस्थाए ध्वस्त हो जाएंगी अराजकता फैल जाएगी सुन रही हो माँ भारती सुयश उसी नौजवान पीढ़ी का वर्तमान है जिसने आपको गुलामी कि बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति हँसते मुस्कुराते दे दी जिनको जन्म देने वाली माताएं गर्व से अपने पुत्र पर शीश उठाकर दुनियां को नए भारत एव माँ भारती के मंदिर का दर्पण दिखा रही है वह माताएं स्वर्ग में हो या अवनी पर सर्वत्र माँ भारतीय के नारी गौरव को महिमा मंडित कर सम्पूर्ण विश्व को संदेश दे रही है


सुयश उन्ही माताओं कि श्रृंखला की संतान है सुयश चौधरी साहब को बड़े ध्यान से सुन रहा था देख रहा था चौधरी साहब सुयश कि तरफ मुखतिब होकर बोले ठीक है बेटे सुयश जब तक तुम नही कहोगे तुम्हारे कमरे में कोई नही जाएगा और उन्होंने सुखिया काका को आदेश दिया काका सुयश के कमरे में कोई नही जाएगा और इसे कोई आवश्यकता हो तो सिर्फ आप इसकी मदद करेंगे चौधरी साहब और सुयश दोनों भोजन करने के उपरांत अपने अपने कमरे में चले गए ।


सुयश सोचने लगा कि आखिर वह चौधरी साहब की पेंटिंग बनाएगा किस चीज पर बहुत सोचने के बाद उसने निष्कर्ष निकाला कि सफेद कपड़े पर ही चौधरी साहब कि पेंडिंग बनाना उचित होगा वह दीर्घकालिक एव टिकाऊ हो होगी उसने सुखिया काका से एक मीटर सफेद कपड़ा मंगवाया और पेंडिंग के रंगों को वह स्वंय बनाने लगा वह सुखिया काका के साथ बाहर जाता और तमाम प्राकृतिक बनस्पतियों लता गुल्म को एकत्र करता और उसी के माध्यम से वह रंगों को बनाता केवल रंगों को ही बनाने में एक माह से अधिक का समय निकल गया।

जव सिंद्धान्त को पता चला कि चौधरी साहब दोनों समय भोजन एव अल्पहार सुयश के साथ ही करते है तो वह चिंतित हो गया उंसे पूरा विश्वास हो गया कि अब चौधरी साम्राज्य का उत्तराधिकारी बनने का उसका सपना चकनाचूर हो चुका है लेकिन वह आसानी से अपने वर्षो कि सेवा को व्यर्थ नही जाने देना चाहता था बड़े उदास मन से मुंह लटकाए बैठा था तभी सिंद्धान्त कि पत्नी मीमांशा ने पूछा अजी आप ऐसे क्यो बैठे है क्या बात है सब ठीक तो है कही कोई अशुभ अपशगुन फिर तो नही हो गया हवेली में बहुत दिनों बाद सुयश के आने पर चौधरी साहब प्रशन्न है और हवेली रौशन है सिंद्धान्त ने मीमांशा को झिटकते हुये कहा पता नही कैसी औरत हमारे पल्ले पड़ गयी जिसे पति कि खुशी की चिंता न होकर हवेली की चिंता है!


मीमांशा बहुत समझदार और गम्भीर औरत थी उसने कहा मैं समझ गयी आपकी परेशानी सुयश का हवेली में रहना और चौधरी साहब का उसके प्रति झुकाव ही है आपको इतनी सी बात समझ मे नही आती है कि जिस नौजवान ने एक अनजाने व्यक्ति के मात्र चश्मे के लिए अपने जान जोखिम में डाल दिया हो जिसकी माँ दर दर ठोकर खा रही हो जिस माँ के जीवन का एकमात्र सहारा उससे दूर एक अजनवी के लिए जोखिम में डाल दिया हो उसके लिए पहला कर्तव्य मंगलम चौधरी जी का है होना भी चाहिए यदि ऐसा वह नही करते तो इस दुनियां में क्या स्वर्ग नर्क कही भी उनको चैन नही मिलता तुम चौधरी साहब को नवजात अवस्था मे कचरे के ढेर में मिले थे तुम जन्म से ही जीवन मृत्यु के लिए संघर्ष कर रहे थे

तब चौधरी साहब ने तुम्हे अपना नाम स्नेह सम्मान और पद कद हद हैसियत सभी तो दिया है मैं स्वंय गरीब मैथिल ब्राह्मण कि बेटी जिसका भरा पूरा परिवार प्लेग से काल कलवित हो गया मैं ही अभागन बची थी जिसे परिवरिश शिक्षा चौधरी साहब के कृपा से ही मिली उन्होंने तुम्हारा विवाह पिता बनकर किया तो मेरा कन्या दान पिता बनकर तुम्हारे और सुयश में मूल रूप से एक अंतर है चौधरी साहब ने तुम्हे जीवन दिया है तुमने अब तक चौधरी साहब के लिए कुछ नही किया है सिवा इसके की उनके साम्राज्य जो उनके बाप दादाओं कि है उंसे उनके द्वारा दी गयी जिम्मेदारी के अनुसार निभा रहे हो जबकि सुयश ने मात्र चौधरी साहब के एक चश्मे के लिए अपने प्राणों की चिंता नही की बेबस मजबूर लाचार जन्मदायनी माँ की परवाह नही किया जिसने चंद प्रहर पहले पूरी रात भूखा रह कर बेटे के लिए बगल से लाई चना मांग कर लायी तुममें और सुयश में अंतर यह भी है कि तुमने अपनी बदनसीबी में भी नसीब के रूप चौधरी साहब से जीवन एव जीवन मे सब कुछ पाया है सुयश ने चौधरी साहब के लिए उस गरीब के पास जो भी था लुटाया है गंवाया है नसीब में जो कुछ बच गया था वह भी नही बचा सुयश के पास कहावत है दो हाथ पैर सलामत तो आदमी कुछ भी कर सकता है मेहनत मजदूरी वह भी सही सलामत सुयश के पास नही बचा तब तुम्हे कौन सी बात है जो सुयश को लेकर चिंतित करती है दिग्भ्रमित करती है जो है उसके साथ खुश रहो नेक कर्म करो ईमानदारी से मेहनत करो चौधरी साहब तुम पर अधिक से अधिक भरोसा कर सके सुयश के प्रति द्वेष घृणा को त्यागो और गले लगाओ!



जारी है







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3 Comments

Abhilasha Deshpande

13-Aug-2023 10:23 PM

Nice part

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अदिति झा

17-Jul-2023 12:07 PM

Nice 👍🏼

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Gunjan Kamal

17-Jul-2023 01:47 AM

👏👌

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